ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ।।१ ।। ईश, जगत में जो कुछ है सब में रमकर गति करता है । कण-कण को गतिमान बनाकर सकल सृष्टि वह रचता है।। त्याग भाव से भोग करे नर , लोभ नहीं मन में लावे । धन किसका ?सब कुछ ईश्वर [...]
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